भारत की जनजातियाँ वर्गीकरण, प्रमुख क्षेत्र

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भारत की जनजाति (Tribes of India Names in Hindi) – भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, भील सबसे अधिक जनसंख्या वाले जनजाति (Major Tribes in India) हैं।

इस प्रकार जनसंख्या के आधार पर भारत में सबसे बड़ी जनजाति ‘भील’ (Bhil Tribe) है। जिनका कुल जनसंख्या 4,618,068 है।

अब-तक भारत के सभी राज्यों में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribe) की कुल संख्या 705 है। जो कुल अनुसूचित जनजाति (ST) जनसंख्या/आबादी का 37.7 प्रतिशत है।

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List of Tribes Names in India

भारत की जनजातियां (Tribes of India)

सर हरबर्ट रिजले (Sir Herbert Risley) ने पहली बार 1901 की भारतीय जनगणना में भारतीय जनसंख्या में प्रजातियों का विवरण प्रस्तुत किया था।

‘सर हरबर्ट रिजले’ द्वारा उल्लिखित प्रजातियों के समूह क्षेत्र नाम निम्नानुसार हैं-

1. द्रविड़ियन या द्रविड़

यह भारत में आदिम प्रजाति (Primitive Species) माना जाता है तथा इसका निवास तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, छोटा नागपुर पठार तथा मध्यप्रदेश राज्य के दक्षिणी भोगों में है। ‘द्रविड़ियन’ या ‘द्रविड़’ प्रजाति कहलाता है।

इसके प्रतिनिधि- पनियान (मालाबार), जुआंग (ओडिया), कोंड (पूर्वीघाट), गोड़ (मध्यप्रदेश), टोडा (नीलगिरी), भील एवं गरासिया (राजस्थान एवं गुजरात) व संधाल (छोटा नागपुर पठार) है।

2. भारतीय आर्य

इस भारतीय आर्य प्रजाति (Indo-Aryan People) के बारे में अनुमान है कि यह प्रजाति ईसा से 2000 वर्ष पूर्व मध्य एशिया से भारत आया। यदपि अधिकांश विद्यवान इसे भारत की मूल प्रजाति मानते है। परन्तु, इसका निवास पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश तथा जम्मू कश्मीर राज्यों में है।

3. मंगोलायड

इस मंगोलायड प्रजाति (Mongoloid People), का निवास हिमांचल प्रदेश, नेपाल के समीपवर्ती क्षेत्र तथा असम राज्यों में है। इसके प्रतिनिधि कनेत (कुल्लू), लेपचा (सिक्किम व दार्जिलिंग), घोड़ो (असम) व भोटिया (उत्तराखंड) को माना जाता है।

4. आर्य द्रविड़ियन

यह आर्य और द्रविड़ प्रजातियाँ का मिश्रण इस आर्य द्रविड़ियन प्रजाति में पाई जाती हैं। इसका निवास स्थान राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों के कुछ हिस्से माना जाता है।

5. मंगोल द्रविड़ियन

यह मंगोल द्रविड़ियन प्रजाति (Mangole Dravidian), ओड़िया तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में मिलती है। यहां के बंगाली ब्राह्मण तथा कायस्थ इसके प्रतिनिधि माने जाते है।

6. सिधो-द्रविड़ियन

यह सिधो-द्रविड़ियन प्रजाति, सीधियन तथा द्रविड़ प्रजातियों का मिश्रण है, जो गुजरात, कच्छ, केरल, सौराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश के पहाड़ी भागों में निवास करती है।

7. तुर्क-ईरानी

यह तुर्क-ईरानी प्रजाति, अफगानिस्तान एवं बलूचिस्तान में निवास करती है।

जनजाति का वर्गीकरण (Classification of Tribes)

वर्ष 1931 की जनगणना रिपोर्ट पर आधारित डाॅ. बी.एस. गुहा का प्रजाति वर्गीकरण (Classification of Tribe by Dr. B. S. Guha) सबसे प्रमुख व सर्वमान्य है, जिसका संक्षिप्त विवरण (List of Tribes Names of India) निम्नानुसार है:-

1. निग्रिटो

नीग्रिटो प्रजाति (Negrito People) के लोग मुख्यतः अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में पाये जाते हैं। इसके अन्य प्रतिनिधि- अंगामी, नागा (मणिपुर तथा कछार पहाड़ी क्षेत्र), बांगड़ी, इरूला, कडार पुलायन मुधुवान तथा कन्नीकर (दक्षिण भारत) है।

इस नीग्रिटो प्रजाति के लोग दक्षिण भारत के केरल राज्य के ‘त्रिवांकुर’ (ट्रावनकोर) – कोचीन, पूर्वी-बिहार की राजमहल पहाड़ियों तथा उत्तरी-पूर्वी सीमांत राज्यों में निवास करते है।

2. प्रोटो-आस्ट्रेलायड या पूर्व-द्रविड़

ये प्रोटो-आस्ट्रेलायड (Proto-Australoid) या पूर्व-द्रविड़ (Pre Dravidian) प्रजाति, भारतीय जनजातियों में शामिल हो गई है। इसके तत्वों का वहन करने वाले दक्षिण भारत में पाए जाते हैं, जिनमें भील, मलायन, चेंचु, कुरूम्बा, मुण्डा, यरूबा, कोल और संथाल प्रमुख हैं।

3. मंगोलायड

मंगोलायड प्रजाति 3 उपवर्गो में विभाजित/मिलती है (Mongoloid Tribes of India) –

  • पूर्व मंगोलायड (Palaeo-Mongoloids) – यह प्रजाति हिमालय में निवास करती है/पायी जाती है।
  • चौड़े सिर वाली प्रजाति के लोग लेपचा जनजाति (Lepcha tribe) में मिलते हैं तथा बांग्लादेश के चकमा इसी प्रजाति से संबंधित है।
  • तिब्बती मंगोलायड (Tibetan Mongoloid) प्रजाति के लोग सिक्किम और भूटान में निवास करती है।

4. भूमध्यसागरीय या द्रविड़ प्रजाति

देश में भूमध्यसागरीय अथवा द्रविड़ प्रजाति के 3 उपविभाग विद्यमान है-

  • प्राचीन भूमध्यसागरीय (Ancient Mediterranean), जो दक्षिण भारत के तेलुगू तथा तमिल ब्राहम्णों में मिलते है।
  • भूमध्यसागरीय (Mediterranean), जो सिंधु घाटी सभ्यता के जन्मदाता (Origin of Indus Valley Civilization) माने जाते हैं तथा ये कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, कोचीन, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र तथा मालाबार में मिलते है।
  • सेमेटिक प्रजाति (Semantic Species) के लोग राजस्थान, पंजाब तथा पश्चिम उत्तरप्रदेश राज्यों में पाये जाते हैं।

5. नार्डिक अथवा इण्डो-आर्यन प्रजाति

यह ‘इण्डो-आर्यन प्रजाति’ अथवा ‘नार्डिक’ प्रजाति भारत में सबसे अंतिम समय में आने वाली प्रजाति है। इसका निवास वर्तमान में उत्तर प्रदेश में पाया/माना जाता है। इस प्रजाति अंतर्गत राजपूत, सिख आदि इसके प्रतिनिधि माने जाते हैं।

6. चौड़े सिर वाली प्रजाति

माना जाता है कि यह प्रजाति यूरोप से भारत में आई है। इसके 3 प्रमुख उपवर्ग हैं –

  • अलपीनोइड (Alpinid), जो गुजरात (बनिया), सौराष्ट्र (काठी), पश्चिम बंगाल (कायस्थ), तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि में निवास करती है।
  • डिनारिक (Dinaric), जो भूमध्यसागरीय प्रजाति (Mediterranean Species) के साथ पायी जाती है।
  • आर्मेनाइड (Armenoids), जिसके प्रतिनिधि पश्चिम बंगाल के कायस्थ, मुम्बई के पारसी, श्रीलंका की वेद्दा प्रजाति के लोग होते है।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 342 (Article 342) अंतर्गत इन्हें ‘अनुसूचित जनजाति’ (ST- Scheduled Tribe) कहा गया। जबकि वर्तमान में इनको आदिवासी वन्यजाति तथा गिरिजन, अरण्यवासी आदि नामों से जाना जाता है।

अनुसूचित जनजाति हेतु 5 कसौटियां

  1. उसमें आदिम विशेषता के लक्षण हो
  2. वह भौगोलिक रूप से अलग हो
  3. इनकी अलग तरह की संस्कृति हो
  4. वह आर्थिक रूप से पिछड़े हो
  5. वह सामान्य समुदाय के लोगों से मिलने में संकोच करें

भारत के प्रमुख जनजातीय क्षेत्र (India Tribal Areas/Belt)

Tribal Areas in India – वर्ष 1960 में, चंदा समिति ने आदिम या अनुसूचित जनजाति के तहत किसी भी जाति या जनजाति को शामिल करने के लिए मुख्य 5 मानकों को निर्धारित किया।

भारत में कुल 461 जनजातीय आदिवासी हैं, जिनमें से 424 अनुसूचित जनजातियों शामिल हैं, जिन्हें सात क्षेत्रों में विभाजित किया गया है।

अर्थात, भारत में 461 जनजातियाँ हैं, जिनमें 424 प्रमुख जनजातियाँ को भारत के 07 (सात) क्षेत्रों में बांटा गया है। जो निम्नानुसार है:-

1. उत्तरी क्षेत्र (Northern Region)

इसके क्षेत्र अंतर्गत जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड तथा हिमांचल प्रदेश की जनजातियां शामिल हैं। इन जनजातियों में लेपचा (रोंग), लाहुल, थारू, बोक्सा, भोटिया, जौनसारी, कनौटा, खम्पा आदि प्रमुख है।

मंगोल प्रजातियों के लक्षण इन सभी जनजातियों में पाए जाते हैं। भोटिया अच्छे व्यापारी माने जाते हैं और चीनी-तिब्बती परिवार की भाषा बोलते हैं।

2. पूर्वोत्तर क्षेत्र (Northeastern Region)

असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम की जनजातियां इनके अंतर्गत आती है। 

पूर्वी असम और नागालैण्ड में नागा, अरूणांचल में आपतानी, मिश्मी व डफला, मिरी, सिक्किम व दार्जिलिंग में लेप्चा (लेपचा), असम मणिपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में हैमर जनजाति, त्रिपुरा व मणिपुर में कुकी, मिजोरम में लुशाई आदि जनजातियां निवास करती है।

अरूणाचल के तवांग में बौद्ध जनजातियां मोनपास, खाम्पतीस और शेरूदुकपैस रहती है। नागा जनजाति उत्तर में कोनयाक, दक्षिण में कबुई, पूर्व में तंखुल, पश्चिम में रेंगमा व अंगामी और मध्य में लहोटा व फोम आदि उपजातियों में बंटी हुई है।

मेघालय में गारो, खांसी और जयंतियां जनजातियां मिलती है।

मंगोलायड प्रजाति के लक्षण पूर्वोत्तर क्षेत्र की सभी जनजातियों में मिलते हैं। ये चीनी, तिब्बती, बर्मी एवं श्यामी परिवार की भाषा बोलती है। ये खाद्य संग्राहक, कृषक, शिकारी एवं बुनकर होते हैं।

3. पूर्वी क्षेत्र (Eastern Region)

इसके अंतर्गत झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा व बिहार की जनजातियां आती है। जुआंग, खरिया, खोंड, भूमिज आडिशा की तथा मुंडा, उरांव, संथाल, हो, बिरहोर, झारखण्ड की जनजाति है।

पश्चिम बंगाल में मुख्यतः उरांव, संथाल, मुंडा मिलती है। ये सभी जनजातियां प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति से संबंधित है। इनका रंग काला अथवा गहरा भूरा, सिर लंबा, चौड़े-छोटी व दबी नाक व हल्के घुघराले बाल होते है।

ये बी रक्त समूह के होते हैं। ये ऑस्ट्रिक भाषा परिवार के हैं तथा कोल व मुंडा भाषा बोलते है।

4. मध्य क्षेत्र (Central India)

इसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश, पश्चिमी राजस्थान व उत्तरी आंध्रप्रदेश की जनजातियां आती है – छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियां गोंड़, बौगा, मारिया तथा अबूझमारिया आदि है।

मध्यप्रदेश के मंडला जिले व छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में इनका संकेन्द्रण अधिक है। पूर्वी आंध्रप्रदेश में भी ये जनजातियां मिलती है। ये सभी जनजातियां प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति से संबंधित है।

5. पश्चिमी भाग (Western Region)

इसके अंतर्गत राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र की जनजातियां आती है। भील, मीणा, गरासिया, बंजारा, सहरिया व राजस्थान की सांसी तथा महादेव, कोली, बाली व डस्ला गुजरात एवं पश्चिमी मध्यप्रदेश की जनजातियां है।

ये सभी जनजातियां प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति की हैं। आस्ट्रिक भाषा परिवार की बोलियां बोलती है।

6. दक्षिणी क्षेत्र (Southern Region)

इसके अंतर्गत मध्य व दक्षिणी पश्चिमी घाट की जनजातियां आती हैं, जो 20डिग्री उत्तरी अक्षांश से दक्षिणी की ओर फैली है। पश्चिमी आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिमी तमिलनाडु और केरल की जनजातियां इसके अंतर्गत आती है।

नीलगिरी के क्षेत्र में टोड़ा, कोटा व बदगा सबसे महत्वपूर्ण जनजातियां है। टोडा जनजाति में बहुपति प्रथा प्रचलित है।

कुरूम्बा, कादर, पनियण, चेचूँ, अल्लार, नायक चेट्टी आदि जनजातियां है। ये नीग्रिटो प्रजाति से संबंधित है। इनका ब्लड ग्रुप ‘ए‘ होता है। ये द्रविड़ भाषा परिवार में आते है।

7. द्वीपीय क्षेत्र (Island Region)

इसके अंतर्गत अंडमान-निकोबार एवं लक्षद्वीप समूहों (Andaman-Nicobar and Lakshadweep Clusters) की जनजातियां आती है। अंडमान-निकोबार की शोम्पेन, ओन्गे, जारवा व सेंटी-नली महत्वपूर्ण जनजातियां है। वो अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है।

ये नीग्रिटो प्रजाति (Negrito People) से संबंधित है। इनका मछली मारना, शिकार करना, कंदमूल संग्रह आदि इसके जीवनयापन का आधार है।

उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड की जनजातियां

यहां (UP Tribes of India) की प्रमुख जनजातियां जौनसारी, राज शौका, भोटिया, बुक्सा, थारू, माहीगीर और खरवार है। उत्तराखण्ड के नैनीताल में जनजातियों की संख्या सर्वाधिक है। उसके बाद देहरादून का स्थान आता है।

1. थारू जनजाति

यह थारू जनजाति, नैनीताल से गोरखपुर और तराई क्षेत्र में निवास करती है। जो किरत वंश का है। इनमें संयुक्त परिवार प्रथा शामिल है। ऐसे कई परिवार हैं जिनमें सदस्यों की संख्या 500 तक है। यह दिवाली को शोक के त्योहार के रूप में मनाते हैं।

2. बुक्सा जनजाति

यह बुक्सा जाति, उत्तराखण्ड के नैनीताल, देहरादून, पौड़ी, गढ़वाल जिलों में निवास करती है। इसका संबंध पतवार राजपूत घराने से माना जाता है। ये हिन्दी भाषा बोलते हैं। हिन्दुओं की तरह इनमें भी अनुलोम व प्रतिलोम विवाह प्रचलित है।

3. राजी अथवा बनरौत जनजाति

यह राजी अथवा बनरौत जनजाति, उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद में पायी जाने वाली कोल जनजाति किरात वंश की हिन्दु जनजाति है, जो झूमिंग प्रथा से कृषि करते है।

4. खरवार जनजाति

यह खरवार जनजाति, उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले में निवास करने वाली बलिष्ठ और खूंखार जनजाति है।

5. जौनसारी जनजाति

यह जौनसारी जनजाति, उत्तराखण्ड के देहरादून, टिहरी-गढवाल, उत्तरकाशी क्षेत्र में मिलती है। ये भूमध्यसागरीय (Mediterranean) क्षेत्रों से संबधित है। इनमें बहुपति विवाह प्रथा पायी जाती है।

6. भोटिया जनजाति

यह भोटिया जनजाति, उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा, चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी क्षेत्रों में पाये जाने वाली ये जनजातियां मंगोल प्रजाति की मानी जाती है, जो ऋतुप्रवाह करती है।

मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ की जनजातियां

यहाँ गोंड, मुंडा, कोरकू, कोरवा, कोल, सहरिया, हल्बा, मारिया, बिरहोर, भूमियां, ओरांव, उरांव, मीना आदि यहां की प्रमुख जनजातियां (Famous MP and CG Tribes of India) है।

छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला कुल जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। झाबुआ जिला जनजातीय जनसंख्या प्रतिशत के अनुसार सर्वोपरि है।

1. गोंड़ जनजाति

यह गोंड जनजाति, भारत की जनजातियोें में सबसे बड़ी है। ये प्राकृ-द्रविड़ प्रजाति अंतर्गत आते है। इनका त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है।

ये मुख्यतः छत्तीसगढ़ के बस्तर, चांदा, दुर्ग जिलों में मिलती है। आंध्रप्रदेश व ओड़िशा में भी इसकी कुछ जनसंख्या पायी जाती है।

2. मारिया जनजाति

मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा, जबलपुर और बिलासपुर जिलों में रहने वाली इस जनजाति की शारीरिक रचना गोंड जनजाति के समान ही होती है।

3. कोल जनजाति

मध्यप्रदेश के रीवा संभाग और जबलपुर जिले में निवास करने वाली इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि होती है।

4. कोरवा जनजाति

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, सरगुजा और रायगढ़ जिले में निवास करने वाली जनजाति है। ये मुख्यतः जंगली कंदमूल एवं शिकार पर निर्भर है। कुछ कोरवा कृषक भी होते है।

5. सहरिया जनजाति

मध्यप्रदेश के गुना, शिवपुरी व मुरैना जिलों में निवास करने वाली यह जनजाति कंदमूल व शहद का संग्रहण कर जीविका निर्वाह करती है।

6. हल्बा जनजाति

मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के रायपुर व बस्तर जिलों में निवास करने वाली इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि होता है। इनकी बोली में मराठी भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग होता है।

7. कोरकू जनजाति

यह भी मुंडा या कोलेरियन जनजाति की शाखा है एवं मध्यप्रदेश के निमाड़, होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाड़ा आदि जिलों में निवास करती है। इस जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि माना जाता है।

राजस्थान की जनजातियां

राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ का नाम एवं महत्वपूर्ण जानकारी इस प्रकार है (Rajasthan Tribes of India)। जिसमें मीणा, भील, गरासिया, साँसी जनजातियाँ आदि है।

1. मीणा जनजाति

राजस्थान में मीणा जनजाति की सर्वाधिक संख्या पायी जाती है। ये मुख्यतः जयपुर, सवाई माधोपुर, उदयपुर, अलवर, चितौड़गढ़, कोटा, बूंदी व डूंगरपुर जिलों में रहते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर इस जनजाति का संबंध भगवान मत्स्यावतार से है। मीणा जनजाति शिव व शक्ति की उपासक माने जाते है।

2. भील जनजाति

यह भील जनजाति, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा जिलों में निवास करती है। भील का अर्थ है – धनुषधारी। ये स्वयं को महादेव की संतान मानते है। भील जनजाति प्रोटो-आस्ट्रेलाॅयड प्रजाति की है।

इनका कद छोटा व मध्यम, आंखे लाल, बाल रूखे व जबड़ा कुछ बाहर निकला हुआ होता है। भीलों में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है। यह प्रजाति सामान्यतः कृषक होती है।

3. गरासिया जनजाति

यह गरासिया जनजाति, मीणा व भील के बाद राजस्थान की तीसरी प्रमुख जनजाति है। ये मुख्यतः दक्षिणी राजस्थान में रहते है।

ये चौहान राजपूतों के वंशज है, परन्तु अब भीलों के समान आदिम प्रकार का जीवन व्यतीत करने लगे है। इनमें मोर बंधिया विवाह, पहरावना विवाह और ताणना विवाह 3 (तीन) प्रकार के विवाह प्रचलित है।

4. सांसी जनजाति

यह सांसी जनजाति, राजस्थान के भरतपुर जिले में रहने वाली खानाबदोश जनजाति है। यह जनजाति स्वयं को वाल्मिकी जाति से भी नीचा मानती है।

झारखण्ड की जनजातियां

झारखण्ड की प्रमुख जनजातियाँ का नाम एवं महत्वपूर्ण जानकारी इस प्रकार है (Jharkhand Tribes of India । जिसमें ‘संथाल’, ‘कोरवा’, ‘उरांव’, ‘असुर’, ‘सौरिया पहाड़िया’, ‘पहाड़ी खड़िया’, ‘खरवार’, ‘मुंडा’ जनजातियाँ आदि है।

1. संथाल जनजाति

यह भारत की एक प्रमुख जनजाति व झारखण्ड की सर्वप्रथम जनजाति है। यह बंगाल, उड़ीसा, असम राज्यों में भी पायी जाती है। ये झारखण्ड में मुख्यतः संथाल परगना, रांची, सिंहभूम, हजारीबाग, धनबाद आदि जिलों में रहते हैं।

संथाल आस्ट्रेलायड और द्रविड़ प्रजाति के होते हैं। ये मुंडा भाषा बोलते है व प्रकृतिपूजक होते है। इनका मुख्य व्यवसाय आखेट, कंदमूल संग्रह व कृषि माना जाता है। ब्राम्हण, सोहरई व सकरात इनके मुख्य पर्व है।

2. कोरवा जनजाति

ये झारखण्ड के पलामू जिले में पाई जाती है। मध्यप्रदेश में भी यह जनजाति निवास करती है, जो कोलेरियन जनजाति से संबंध रखती है।

3. उरांव जनजाति

यह भी झारखण्ड की प्रमुख जनजातियों में से एक है। इनका संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति से है। ये कुरूख भाषा बोलते हैं, जो मुंडा भाषा से मिलती जुलती है। ये मुख्यतः संथाल परगना व रोहतास जिलों में रहते है। इनका मुख्य व्यवसाय शिकार करना, मछली पकड़ना व कृषि है।

4. असुर जनजाति

यह असुर जनजाति, मुख्यतः सिंहभूम जिले में रहते है। ये भी प्रोटो-आस्ट्रेलाॅयड प्रजाति से संबंधित है। ये मुंडा वर्ग की मालेटा भाषा बोलते है। लोहा गलाना, शिकार करना, मछली पकड़ना, खाद्य संग्रह व कृषि इनका मुख्य व्यवसाय है।

5. सौरिया पहाड़िया जनजाति

यह सौरिया पहाड़िया जनजाति, संथाल परगना, गोड्डा, राजमहल आदि जिलों में निवास करने वाली यह कृषक जनजाति है।

6. पहाड़ी खड़िया जनजाति

यह पहाड़ी खड़िया जनजाति, सिंहभूम जिले की पहाड़ियों में निवास करने वाली यह जनजाति खाद्य संग्रह, बागवानी व कृषि पर निर्भर होती है।

7. खरवार जनजाति

यह खरवार जनजाति, लड़ाकू व वीर जनजाति है। जो झारखण्ड के पलामू व हजारीबाग जिलें में निवास करती है।

8. मुंडा जनजाति

यह मुंडा जनजाति भी झारखण्ड की प्रमुख जनजातियों में से है। इनकी अनेक उपजातियां भी है, जो निम्नानुसार है- पातर मुंडा, महली मुंडा, तमाड़िया और खंगार मुंडा नाम से जाना जाता है।

भारत की अन्य जनजातियां

भारत की अन्य प्रमुख जनजातियाँ संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी (Others Famous Tribes Names of India)- जिसमें ‘नागा जनजाति’, ‘टोडा एवं शोम्पेन’, ‘सेंटलीज’, ‘ओंगे’ व ‘जारवा’ जनजाति विलुप्त जनजातियाँ आदि है।

1. नागा जनजाति

यह नागा जनजाति, नागालैण्ड, मणिपुर व अरूणांचल प्रदेश की जनजाति है। जो इंडो-मंगोलाॅयड प्रजाति से संबंध रखती है। ये अधिकांशतः ईसाई धर्म से संबंधित है। कृषि, पशुपालन व मुर्गीपालन इनका मुख्य व्यवसाय है। ये झूमिंग कृषि करते है।

2. टोडा जनजाति

यह टोडा जनजाति, तमिलनाडु की नीलगिरी व उटकमंड पहाड़ियों में निवास करने वाली जनजाति है। इनका संबंध भूमध्यसागरीय प्रजाति से है। ये हष्ट-पुष्ट, सुंदर व गोरी होती है। इनका मुख्य व्यवसाय पशुचारण है। टोडा जनजाति में बहुपति प्रथा प्रचलित है।

3. अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर पायी जाने वाली ‘शोम्पेन’, ‘सेंटलीज’, ‘ओंगे’ ‘जारवा’ जनजाति विलुप्त की कगार पर है। ये नीग्रिटो प्रजाति से संबंधित (Negrito Tribes of India) है।

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