भारतीय प्राथमिक शिक्षा प्रणाली व प्रकार

भारत की प्राचीन (Ancient) और वर्तमान शिक्षा प्रणाली (Present Education System of India) अंतर्गत भारत की प्राचीन वैदिक एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली क्या है और भारतीय शिक्षा प्रणाली के प्रकार (Types) कितने होते है? संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी (Education System in India Essay) इस प्रकार है।

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Education System in India Essay

शिक्षा की संकल्पना (Concept of Education) – शिक्षा (Education) मनुष्य के विकास की पूर्णतः की अभिवृत्ति है, शिक्षा को शब्द संग्रह अथवा समूह के रूप में न देखकर विभिन्न शक्तियों के विकास के रूप में देखा जाना चाहिए।

  • शिक्षा शास्त्र (Pedagogy) अनुसार, शिक्षा से ही व्यक्ति सही रूप से चिंतन करना सीखता है। तथ्यों के संग्रह रूप में नाम शिक्षा नहीं है। इसका सार (Essence)- मन में एकाग्रता (Concentration in Mind) के रूप में प्रकट होना चाहिए।
  • शिक्षां व्यक्तियों का निर्माण करती है। चरित्र को उत्कृष्ठ बनाती है और व्यक्ति को सांसारिक करती है। जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है, वही सही अर्थ में शिक्षा है।
  • शिक्षा (Education) बालक के नैतिक, सामाजिक, शारीरिक, संवेगात्मक, बौद्धिक और आंतरिक ज्ञान को बाहर लाने में योग देने वाली एक क्रिया है। शिक्षा सीखना नहीं है, वह मस्तिष्क की शक्तियों का अभ्यास और विकास है।
  • कल्याण एवं आत्मिक विकास के लिये परमात्मा से प्रार्थना करते थे। इस प्रकार प्राचीन शिक्षा (Ancient Education) का मूल आधार नैतिक शिक्षा (Moral Education) थी।
  • प्राचीन शिक्षा (Ancient Education) में ‘सत्यम शिवम सुंदरम्‘ के अनुसार ‘विश्व कल्याणार्थ सदैव सदाचारी चिंतन’ किया जाता था। ऋषि तपस्या करते थे। छात्र तपस्वी एवं वृत्त बनाकर शिक्षा प्राप्त करते थे। संयम से रहना उनका प्रमुख उद्देश्य (Main Objective) था।
  • छात्रों में गुरू एवं अपने बड़ों के लिये आदर एवं शिक्षा भाव था। किन्तु, आज की शिक्षा में नैतिकता का अभाव (Lack of Morality) है। प्राचीन काल (Antiquity) में सम्पूर्ण समाज में गुरूओं का आदर होता था।

प्राचीन शिक्षा (Ancient Education) का संबंध नैतिक मूल्यों (Moral Values) से था। उस समय की शिक्षा में नैतिकता की शिक्षा (Ethics Education) समाहित थी।

प्राचीन काल की शिक्षा के बिन्दु निम्न है:-

  1. आध्यात्मिकता (Spirituality)
  2. आत्म सिद्धि (Self realization)
  3. धर्म एवं आचरण (Religion and Conduct)
  4. ज्ञान प्राप्ति एवं जिज्ञासा (Knowledge and Curiosity)
  5. नैतिक मूल्यों के संबंध में स्वतंत्र विचार (Independent moral values)
  6. सहनशीलता एवं श्रद्धा भावना (Tolerance and Reverence spirit)

परिभाषा- शिक्षा (Shiksha) को अंग्रेजी भाषा में ‘Education’ कहते है। लैटिन भाषा के शब्द ‘Educatum’ से एजुकेशन शब्द (education word) की उत्पत्ति हुई है।

  • यह दो शब्द ‘e’ और ‘duco’ से मिलकर बना है। जिसमें ‘e’ का अर्थ ‘out of (अंदर से)‘ एवं ‘duco’ का अर्थ ‘to lead forth (आगे बढ़ने से)’ होता है।
  • Education का शाब्दिक अर्थ – आंतरिक को बाहर लाना तथा दूसरे अर्थ में शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है- बालक की अंतर्निहित शक्तियों को बाहर लाकर सर्वांगीण विकास (Round Development) करना, जो शक्ति में पहले से है, उन्हें प्रस्फुटित करना।
  • इस प्रकार Education का अर्थ अंदर से विकास करना है। बालक की आंतरिक शक्तियों का विकास करना है।
  • ‘शिक्षा’ शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष’ धातु रूप से उत्पत्ति हुआ है। जिसका अर्थ होता है- ‘सीखना‘ और ‘सिखाना‘ अर्थात् शिक्षा में सीखने-सिखाने की क्रिया विद्यमान होती है।

विभिन्न दार्शनिकों/भाषाविद/लेखक के अनुसार शिक्षा की प्रमुख परिभाषाएं (Definition of Education by Different Philosophers/Authors) निम्न है:-

  • सुकरात के अनुसार‘‘शिक्षा का अर्थ संसार के सर्वमान्य विचारों को, जो कि प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में स्वभावतः निहित होते हैं, प्रकाश में लाना है‘‘
  • एफ.डब्ल्यू. टामस ने लिखा है- ‘‘भारत में शिक्षा विदेशी पौधा नहीं है। संसार में कोई भी ऐसा देश नहीं है। जहाँ प्राचीन काल में ज्ञान के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ है या जिसका इतना स्थायी और शक्तिशाली सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा हो‘‘
  • लाॅज के अनुसार – ‘‘बच्चा अपने माता-पिता को और छात्र अपने शिक्षकों को शिक्षित करता है।‘‘
  • टैगोर के अनुसार – ‘‘उच्चतम शिक्षा वह है जो संपूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है‘‘
  • स्पेन्सर के अनुसार – ‘’शिक्षा पूर्ण जीवन है‘
  • एडम स्मिथ के अनुसार – ‘‘शिक्षा द्विधु्रवीय प्रक्रिया है‘‘
  • जाॅ डी.वी के अनुसार – ‘’शिक्षा त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है‘’

वर्तमान समय में शिक्षा का मुख्य आधार (Mainstay of Education) छात्र को माना गया है। शिक्षा के संकुचित अर्थ से तात्पर्य यह है कि, जो शिक्षा (Education) एक निश्चित स्थान- निश्चित पाठ्यक्रम के आधार पर दी जाती है।

  • उसे शिक्षा का उद्देश्य (Purpose of Education) बालक को केन्द्र मानकर दी जाती है। वर्तमान समय में जिस निश्चित स्थान पर दी जाती है, उसे विद्यालय (School) कहते है।
  • विद्यालय (School) में दी जाने वाली शिक्षा का निर्धारित पाठ्यक्रम (Prescribed Course) होता है। इस शिक्षा को औपचारिक शिक्षा (Formal Education) भी कहते है।

विष्णुपुराण के अनुसार – ‘विद्या वह है जो मुक्ति दिलाए‘‘ Indian education system essay

महात्मा गांधी के अनुसार – ‘‘शिक्षा से मेरा तात्पर्य है कि जो बालक एवं मनुष्य के शरीर, आत्मा एवं मन का सर्वांगीण विकास कर सकता है।‘‘

फ्रोबेल के अनुसार – ‘‘शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक/छात्र अपनी जन्म-जात शक्तियों को प्रकटित करता है।‘‘ 

हरबर्ट के अनुसार – ‘‘शिक्षा नैतिक चरित्र का उचित विकास है।‘‘

प्राचीन कालीन वैदिक शिक्षा प्रणाली (Vedic Education System) में भारतीय शिक्षा का स्रोत वेद ही था और वेदों के अनुरूप भारतीयों का जीवन दर्शन तथा शिक्षा दर्शन (Philosophy of Life and Education) प्राप्त हुआ।

वैदिक काल (Vedic Period) में धार्मिकता, चरित्र निर्माण, नागरिक तथा सामाजिक कर्तव्य पालन की क्षमता, राष्ट्रीय संस्कृति का विकास करना आदि शिक्षा के प्रमुख लक्ष्य हुआ करते थे।

  • अपने गुरू को दक्षिणा अवश्य देता था। वह दक्षिणा के रूप में धन, भूमि, पशु तथा अन्य कुछ भी दे सकता था। शिक्षा निःशुल्क (Free Education) होने के कारण सार्वभौमिक (Universal) और सभी के लिये थी।
  • शिक्षा का आरंभ 5 वर्ष की आयु में आरंभ होता था और सर्वजातियों के लिये होता था, इसे विद्यारम्भ संस्कार कहा जाता है।
  • प्राचीन काल में शिक्षार्थियों का जीवन धर्मयुक्त होता था। शिक्षा का आशय एक धार्मिक संस्था होने से था। अध्यापक को यह पढ़ाना पढ़ता था कि कैसे प्रार्थना और यज्ञ कार्य करें।
  • इस प्रकार अपने जीवन की अवस्था (Life Stage) के अनुकूल स्वयं के कर्तव्यों को पूर्ण करें। भारतीय शिक्षा (Indian Education System Essay) आवश्यक रूप से इसमें धार्मिक तथ्यों (Religious Facts) का समावेश था।
  • प्राचीन काल में छात्र गुरू के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरू को शिक्षा के केन्द्र में गुरू के आश्रम, गांव एवं नगरों से दूर प्राकृतिक वातवरण में होते थे।
  • छात्र वृक्ष की छाया में वेदों का अध्ययन (Study of Vedas) करते हुए मानसिक एवं एकाग्र, शारीरिक रूप से स्वस्थ्य होते थे। छात्र शिक्षा हेतु गांव एवं नगरों से दूर जाया करते थे।
  • यह संस्कार उस समय होता था, जब बालक गुरू के संरक्षण में वैदिक शिक्षा (Vedic Education) आरंभ करता था। उपनयन का शाब्दिक अर्थ ‘पास ले जाना‘
  • उपनयन (Upanayana) के बाद छात्र ब्रम्हचारी कहलाने लगता था। यह प्रत्येक वर्ग के छात्र के लिये अनिवार्य था। परन्तु शुद्रों का उपनयन संस्कार (Thread Ceremony) ही होता था।

इस वैदिक काल में गुरू-शिष्य संबंध बड़ा ही मृदुल था। गुरू, शिष्य के पुत्रवत् व्यवहार करते थे और शिष्य, गुरू के साथ पितावत् व्यवहार करते थे। इसका वर्णन इस प्रकार था –

  1. गुरू के प्रति शिष्य के कर्तव्य
  2. शिष्य के प्रति गुरू के कर्तव्य

इस वैदिक शिक्षा (Vedic Education) को दूसरे शब्दों में ‘गुरुकुल प्रणाली (Gurukul System)’ कह सकते है। छात्र प्रायः 8 वर्ष की अवस्था में माता-पिता को छोड़कर गुरूकुल में प्रवेश करता था और उसे ब्रम्हचारी के रूप में 24 वर्ष की आयु तक रहना पड़ता था।

  1. शिक्षा व्यवस्था
  2. शिक्षा के उद्देश्य
  3. गुरू-शिष्य संबंध
  4. अनुशासन
  5. पाठ्यक्रम
  6. व्यवसायिक शिक्षा
  1. धर्म पर अधिक बल
  2. भौतिक विज्ञानों की उपेक्षा
  3. हस्तकला की उपेक्षा
  4. शूद्रों की शिक्षा की उपेक्षा
  5. स्त्री शिक्षा की उपेक्षा

आधुनिक समय में शिक्षा को गतिशील माना गया है तथा अजीवन चलने वाली प्रक्रिया बताया गया है। शिक्षा शब्द (Education Word) का प्रयोग 3 रूपों से किया जाता है –

  • ज्ञान के लिए
  • मानव के शारीरिक एवं मानसिक व्यवहार में परिवर्तन हेतु
  • विषय के लिए -शिक्षा विषय के रूप में ‘शिक्षाशास्त्र (Pedagogy)‘ कहलाता है।

शिक्षाशास्त्र (Pedagogy) में शिक्षा की प्रक्रिया के विभिन्न अंग (Parts of Pedagogy) निम्न है-

  1. शिक्षक (Teacher)
  2. शिक्षार्णी (Methodology)
  3. पाठ्यक्रम (Curriculum)
  • शिक्षा का गतिशील प्रक्रिया है।
  • शिक्षां द्विमुखी प्रक्रिया है।
  • शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है।
  • बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास ही शिक्षा है।
  • शिक्षां का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है।

इस शिक्षा के अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Education) पर विचार करने से यह स्पष्ट हो गया है कि मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली शिक्षा (education) अवश्य ही अत्यंत महत्वपूर्ण है।

शिक्षां का महत्व (Importance of Education) ही उसके कार्य है। शिक्षा व्यक्ति के प्रत्येक पहलू को विकसित करके उसका चारित्रिक निर्माण करती है और मानवता का पाठ पढ़ाती है।

शिक्षा शास्त्र के अंतर्गत शिक्षा के कार्य (Work of Education) निम्न है:-

  1. व्यक्ति से संबंधित कार्य
  2. समाज से संबंधित कार्य
  3. राष्ट्र से संबंधित कार्य
  4. प्राकृतिक वातावरण से संबंधित कार्य
  • आंतरिक शक्तियों का विकास
  • व्यक्तियों के संपूर्ण व्यक्तित्व का उचित विकास
  • भावी जीवन हेतु तैयारी
  • नैतिक विकास
  • मानवीय गुणों का विकास
  • सामाजिक नियमों का ज्ञान
  • प्राचीन साहित्य का ज्ञान
  • सामाजिक उन्नति में सहायक
  • बुराई के निवारण में सहायक
  • भावनात्मक एकता
  • राष्ट्रीय विकास
  • राष्ट्रीय एकता
  • वातावरण परिवर्तन
  • समायोजन

शिक्षा के प्रकार (Types of Education) या शिक्षा के रूप (Form of Education in Hindi)

यहाँ शिक्षा मुख्यतः 4 प्रकार की होती है-

  • औपचारिक शिक्षा (Formal education)
  • अनौपचारिक शिक्षा (Informal education)
  • निरौपचारिक शिक्षा (Non-formal education)
  • दूरस्थ शिक्षा (Distance education)

औपचारिक शिक्षा (Formal Education) को हम नियमित शिक्षा (Regular Education) भी कहते है। किसी संस्था द्वारा एक विशेष विधि एवं व्यवस्था के अनुसार किसी निश्चित उद्देश्य को सामने रखकर किसी विशेष समय में दी जाती है।

विद्यालय (School) भी एक स्थल है। जिसे समाज अपनी आवश्यकतानुसार स्थापित करता है। इस प्रकार की शिक्षा आचारण में परिवर्तन लाने के लिए पूर्व संयोजित होती है, जिसमें एक उद्देश्य की ओर ध्यान रखा जाता है।

औपचारिक शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Formal Education) –

  1. औपचारिक शिक्षा नियमित होती है।
  2. इसमें पहले योजना बना ली जाती है।
  3. इसमें उद्देश्य पहले से ही निर्धारित होते है।
  4. इस औपचारिक शिक्षा में उद्देश्य की प्राप्ति के अनुसार ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है।

अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) अनियमित शिक्षा (Irregular Education) के अंतर्गत आती है। इस शिक्षा में न तो पहले से योजनाएं बनायी जाती है और न ही कोई निश्चित समय होता है। यह शिक्षा बालक के स्वाभाविक विकास के साथ-साथ चलती है।

जन्म के उपरांत बालक वातावरण से अनुकूल बनाने के लिए प्रतिक्रियाशील हो उठता है। यही से उसकी अनौपचारिक शिक्षा आरंभ होती है।

बालक समाज में रहकर अपने बड़ों का अनुसरण करके और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्वयं अनुभव प्राप्त करके शिक्षा प्राप्त करता है।

अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Informal Education) –

  1. अनौपचारिक शिक्षा अनियमित होती है।
  2. इसमें पहले से कोई योजना नहीं बनायी जाती है।
  3. यह शिक्षा बालक के स्वाभाविक विकास के साथ-साथ चलती है।
  4. बालक इससे स्वयं अनुभव प्राप्त कर शिक्षा प्राप्त करता है।

निरौपचारिक शिक्षा (Non-Formal Education) औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा का मिश्रित रूप होता है। Indian education system essay

दूरस्थ शिक्षा (Distance Education) को अनेक नामों से पहचाना जाता है। जैसे- मुक्त अधिगम अथवा शिक्षा पत्राचार, शिक्षा बाहरी अध्ययन, गृह अध्ययन, परिसर से बाहर अध्ययन आदि। भारत में इसे दूरस्थ शिक्षा तथा मुक्त शिक्षा (Open Education) के नाम से जाना जाता है। Indian education system essay

भारत की शिक्षा प्रणाली संबंधी प्रश्न-उत्तर

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नमस्ते दोस्तों.! मेरा उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों का सहयोग करना है व अपने अर्जित अनुभवों तथा ज्ञान को वितरित करके आप लोगों की Help करना है।

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