भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख व्यक्तित्व

यहां आधुनिक भारतीय इतिहास के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े प्रमुख व्यक्तित्व की जीवनी (जीवन परिचय) (List of Freedom Fighters Name in Hindi) संबंधी राजनीतिक नेताओं, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता की प्रमुख महत्त्वपूर्ण घटनाएँ में उनके अहम भूमिका/योगदान की जानकारी (Famous Personalities of Indian Freedom Movement, Biography of Indian National Leaders) दी गई है।

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Indian National Leaders Name List in Hindi

भारत की स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनो में भाग लेने वाले एवं प्रमुख व्यक्तित्व का जीवन परिचय (जीवनी) | All Indian National Leaders Chart Names List in Hindi

सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन परिचय (जीवनी) | Sardar Vallabhbhai Patel Biography in Hindi

लौह पुरुष सरदार पटेल स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राजनीतिज्ञ थे।

उन्होंने भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। इन्हें ‘नवीन भारत का निर्माता’ भी माना जाता है।

मूल रूप से गुजरात के रहने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। वल्लभभाई पटेल का पूरा नाम ‘वल्लभ भाई झावेरभाई पटेल’ था।

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पिता का नाम ‘झावेर भाई पटेल’ और माता का नाम ‘लाडबा पटेल’ था। जिनकी सरदार पटेल चौथी संतान थी। इसकी शादी पत्नी ‘झबेरबा’ से कम उम्र में हुई थी।

सरदार पटेल को महिलाओं के अधिकारों के लिए गुजरात में वर्ष 1928 में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन ‘बारदोली आंदोलन’ के बाद वहां की महिलाओं ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से सम्मानित किया।

भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए ‘भारत का लौह पुरूष’ (Iron Man of India) के रूप में जाना जाता है।

महात्मा गांधी के अनुयायी होकर कांग्रेस तथा राष्ट्रीय आंदोलन में आये गुजरात विद्यापीठ की स्थापना करने वाले व्यक्तियों में शामिल थे।

बारदोली में ‘किसान आंदोलन’ का नेतृत्व किया। महात्मा गांधी ने उन्हें ‘सरदार की उपाधि’ दी।

वर्ष 1931 में कराची अधिवेशन में कांग्रेस की अध्यक्षता की। सरदार पटेल वर्गभेद तथा वर्णभेद के कट्टर विरोधी थे।

‘क्रिप्स मिशन’, ‘शिमला सम्मेलन’ और ‘कैबिनेट मिशन’ का हिस्सा रहे।

इन्होंने 562 रियासतों के विलय में लौह नीति अपनायी अर्थात भारत को एक राष्ट्र बनाया था। इन्हें ‘भारत का बिस्मार्क’ कहा गया।

भारत में 31 अक्टूबर को ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती’ मनाई जाती है। जिसे ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाता है। इनकी मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में हुआ।

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने नौकरशाही (अफसरशाही) को भारत की सरकारी मशीनरी का ‘स्टील फ्रेम’ कहा जाता है।

गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लोहे की मूर्ति का निर्माण किया गया है। इसे ‘एकता की मूर्ति (स्टेच्यू ऑफ यूनिटी)’ के नाम से जाना जाता है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय (जीवनी) | Dr. Rajendra Prasad Biography in Hindi

डाॅ राजेन्द्र प्रसाद, भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को जिरादेई, सीवान (बिहार) में हुआ था।

उनके पिता का नाम ‘महादेव सहाय’ और माता का नाम ‘कमलेश्वरी देवी’ था। उनके पिता संस्कृत और फारसी भाषा के ज्ञाता थे।

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राजेन्द्र बाबू का विवाह 13 वर्ष की बाल्यकाल में ‘राजवंशी देवी’ से हो गया था।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार के जिला स्कूल और कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से लॉ विषय में डॉक्टरेट की उपाधि मिली।

डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद हिन्दी, अंग्रेजी, बंगाली, उर्दू एवं फारसी भाषा के विद्वान थे।

ये भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख स्वाधीनता सेनानी थे। वर्ष 1917 के चम्पारण आंदोलन में वे गांधी जी के अनुयायी बन गये।

राजेंद्र प्रसाद को वर्ष 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ दौरान ब्रिटिश प्रशासन ने जेल में डाल दिया था।

उन्होंने वर्ष 1946 एवं 1947 के अंतरिम सरकार में भारत की पहली कैबिनेट मंत्रिमण्डल में कृषि और खाद्य मंत्री का पदभार भी संभाला/बने।

वर्ष 1934 को कांग्रेस के बंबई अधिवेशन के अध्यक्ष बने। राजेंद्र प्रसाद एक से अधिक बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारतीय गणतंत्र के वे प्रथम राष्ट्रपति बने। उन्होंने 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति पदभार संभाला, जो 14 मई 1962 तक कार्यकाल रहा।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के दो बार राष्ट्रपति बने। वर्ष 1957 को दुबारा राष्ट्रपति बने थे। जो 2 साल बाद वर्ष 1962 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहे।

डाँ. राजेंद्र प्रसाद की बहन का नाम ‘भगवती देवी’ था। जिनका निधन 25 जनवरी 1950 को हुआ था। जिसके अगले दिन 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणराज्य के स्थापना अंतर्गत भारतीय संविधान लागू हुआ था।

वर्ष 1962 में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (Bharat Ratna) के सम्मान से भूपित किया गया था।

इन्होंने हिंदी में ‘देश’ और अंग्रेजी में ‘पटना लॉ वीकली’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला/प्रकाशित कराया।

उनकी मृत्यु 28 फरवरी, 1963 को पटना के सदाक़त आश्रम में हुई।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें ‘इंडिया डिवाइडेड’, ‘बापू के कदमों में बाबू’, ‘गांधीजी की देन’, ‘आत्मकथा’, ‘सत्याग्रह ऐट चम्पारण’ और ‘भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र’ है।

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय (जीवनी) | Rabindranath Tagore Biography in Hindi

रवींद्रनाथ टैगोर एक महान कवि, साहित्‍य, कला और संगीत, उपन्‍यासकार, चित्रकार, नाटककार और प्रसिद्ध दार्शनिक थे।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्‍म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘देवेन्द्रनाथ टैगोर’ और माता का नाम ‘शारदा देवी’ था। बचपन का नाम ‘रबी’ था। उनका विवाह 1883 में ‘मृणालिनी देवी’ के साथ हुआ।

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विश्व मानवता के अग्रदेत, महान कवि, प्रसिद्ध संगीतज्ञ, विख्यात साहित्यकार, ख्यातिलब्ध चित्रकार तथा आधुनिक समाज के निर्माता रविन्द्र नाथ टैगोर/ठाकुर अपने पिता देवेन्द्र नाथ टैगोर के 7वें पुत्र थे।

आठ वर्ष की उम्र में अपनी पहली कविता और सोलह साल की उम्र में नाटक और कहानियां लिखना शुरू कर दिया था।

उन्‍होंने विभिन्‍न विषयों पर अनेक प्रसिद्ध लेख के साथ-साथ आठ उपन्‍यास, आठ कहानी संग्रह एवं एक हजार कविताएं की रचना किया है।

संगीतप्रेमी रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना किया है। जिसमें आज दो गीत भारत के राष्ट्रीय गान ‘जनगणमन’ और बांग्‍लादेश के राष्‍ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ के रूप में विख्यात है।

गांधीजी के जीवन का आदर्श गीत वाक्य ‘एकला चालो रे’ गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा बंगाल की आर्थिक दरिद्रता बोध पर 100 पंक्तियों की कविता रचना किया था।

वर्ष 1901 में कलकत्ता में उन्होंने विश्व भारतीय विश्वविद्यालय की स्थापना और 5 विद्यार्थियों साथ शांति निकेतन की स्‍थापना किया एवं राष्ट्रीय गान ‘जनगणमन’ के प्रणेता रहे।

वर्ष 1912 में भारत से इंग्लैंड दौरे पर उनके द्वारा अपने कविता संग्रह गीतांजलि का ‘अंग्रेजी में अनुवाद’ किया था।

सर्वतोमुखी प्रतिभा से युक्त राष्ट्रवाद तथा अन्तर्राष्ट्रीयता के प्रबल समर्थक व मानवता प्रेमी व्यक्ति थे।

वर्ष 1913 में गीतांजली के लिये ‘नोबेल साहित्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्‍यक्ति थे, जिन्‍हें नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था।

वर्ष 1913 में ही ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘सर की उपाधि’ एवं 1915 में ‘नाइटहुड की उपाधि’ से नवाजा गया था।

विश्व धर्म संसद को दो बार संबोधित करने वाले गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की मृत्यु प्रोस्टेट कैंसर बीमारी से 7 अगस्त, 1941 (रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि) को कोलकाता में हुआ।

गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की प्रमुख रचनाएँ ‘एकला चालो रे’, ‘जनगणमन’, ‘आमार शोनार बांग्ला’, ‘गीतांजली’, ‘गीतिमाल्य’, ‘गीताली’, ‘शिशु भोलानाथ’, ‘शिशु’, ‘क्षणिका’, ‘कणिका’, ‘खेया’, ‘कथा ओ कहानी’, ‘गोरा एवं घरे बाईरे’, ‘भिखारिन’, उपन्यास- ‘अंतिम प्यार और अनाथ’, ‘गोरा’, ‘नौकादुबी’, ‘चतुरंगा’, ‘घारे बायर’, ‘घारे बायर’, जोगजोग’, ‘मुन्ने की वापसी’ कहानियां- ‘मास्टर साहब’, ‘काबुलीवाला’ और ‘पोस्ट मास्टर’ प्रसिद्ध है।

मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय (जीवनी) | Madan Mohan Malviya Biography in Hindi

मृदुभाषी मदन मोहन मालवीय एक राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्हें ‘महामना’ की उपाधि से नवाजा गया था।

मदन मोहन मालवीय जी का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘पंडित ब्रजनाथ’ और माता का नाम ‘मूनादेवी’ था।

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मदन मोहन मालवीय सात भाई बहनों में पाँचवे पुत्र थे। उनके पिता पं ब्रजनाथ संस्कृत भाषा के प्रख्यात विद्वान माने जाते थे।

उनका ‘मालवीय’ पदनाम मध्य भारत के मालवा प्रांत से तीर्थराज प्रयाग आ बसे पूर्वज के जातिसूचक नाम पर रखा गया था।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा 1879 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय (पहले मूइर सेंट्रल कॉलेज) से मैट्रिक तक एवं 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए शिक्षा की पढ़ाई पूरी की।

साथ ही शिक्षक के रूप में इलाहाबाद जिले में कार्य किये। वे हिन्दी, अंग्रेजी तथा संस्कृत भाषाओं के ज्ञाता थे।

वर्ष 1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में भाग लिया।

वर्ष 1891 में उन्होंने अपनी एल.एल.बी. शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद जिला न्यायालय में वकालत शुरू किया। वर्ष 1909 में अंग्रेजी दैनिक लीडर का संपादन किये। वे तीन बार ‘हिन्दु महासभा’ के अध्यक्ष एवं संस्थापक सदस्य भी रहे थे।

मदन मोहन मालवीय ने राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर 1887 में हिन्दी अंग्रेजी समाचार पत्र ‘हिन्दुस्तान’ का संपादन एवं 1907 में ‘अभ्युदय‘ नामक हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लिया एवं वर्ष 1909 तथा वर्ष 1918 ई. में दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष हुए।

वर्ष 1902 ई. में उत्तर प्रदेश ‘इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ एवं ‘सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली’ के सदस्य बने। वर्ष 1910 में काशी में आयोजित ‘प्रथम हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की अध्यक्षता किया।

वर्ष 1916 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने मालवीय जी को ‘महामना-ए-मैम ऑफ द लार्ज हार्ट’ की उपाधि दिया था।

शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान वर्ष 1915 को ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) की स्थापना किया गया।

जिसमे 1 अक्टूबर, 1915 को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी एक्ट पास हुआ और 4 फरवरी, 1916 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग ने काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की शिलान्यास किया गया था।

साथ ही वे अन्य साहित्यिक संस्था – ‘साहित्य सभा’, ‘हिन्दू समाज’ एवं ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की स्थापना की।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया एवं उन्हें वर्ष 1909, 1918, 1930 व 1932 में कांग्रेस का अध्यक्ष रहे। मालवीय जी का निधन 12 नवंबर 1946 को हुआ था।

24 दिसम्बर 2014 को ‘मदनमोहन मालवीय’‘अटल बिहारी बाजपेयी’ को भारत रत्न देने की घोषणा की गई । दोनों महापुरूष का जन्म दिवस 25 दिसम्बर को मनाया जाता है।

सी. राजगोपालाचारी का जीवन परिचय (जीवनी) | C. Rajagopalachari Biography in Hindi

सी. राजगोपालाचारी वकील, लेखक, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। भारत के द्वितीय गवर्नर अर्थात स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्नर जनरल (भारतीय गर्वनर जनरल) एवं वे मद्रास के राजनेता भी थे।

उन्हें ‘सी. आर.’ और ‘राजाजी’ के नाम से भी जाना जाता था।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म थोराप्पली गांव (मद्रास प्रेसिडेंसी) में 10 दिसंबर, 1878 को वैष्णव ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

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सी. राजगोपालाचारी केे पिता का नाम ‘चक्रवर्ती वेंकट आर्यन’ और माता का नाम ‘सिंगारम्मा’ था। राजगोपालाचारी का विवाह (पत्नी का नाम) ‘अलामेलु मंगम्मा’ से हुआ था।

इनके तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। पुत्र चक्रवर्ती राजगोपालाचारी नरसिम्हन कृष्णागिरी ने पिता की आत्मकथा लिखी एवं महात्मा गाँधी के बेटे देवदास गाँधी के साथ उनकी पुत्री लक्ष्मी का विवाह हुआ था।

उनकी प्रारंभिक स्कूल शिक्षा ‘थोरापल्ली’ और हाई स्कूल की शिक्षा होसुर आर. वी. गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में ही हुई थी।

वर्ष 1894 में कला में स्नातक सेंट्रल कॉलेज, बैंगलोर से किया। साथ ही मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में कानून की पढाई पूरी की।

बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर उन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन तहत राजनीति में आये और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने।

पेशे से वकील राजगोपालाचारी का नाम राष्ट्रवाद में भाग लेने के बाद उन्होंने प्रत्येक राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। वर्ष 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन, कलकत्ता एवं वर्ष 1907 के कांग्रेस अधिवेशन, सूरत में भाग लिया।

वे ‘नो चेन्जर्स’ समूह के नेता थे, जो अग्रेज़ी सरकार का ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल’ में व राज्यों के ‘विधान परिषद्’ तथा ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919’ में प्रवेश का विरोध किया।

वर्ष 1930 में राजगोपालाचारी ने गांधीजी ने नमक सत्याग्रह में समर्थन में नागपट्टनम के पास वेदरनयम में दांडी मार्च निकाल नमक कानून तोड़ने हेतु ‘वेदारंगम मार्च’ किया।

गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट, 1935 अंतर्गत मद्रास प्रेसीडेंसी में राजगोपालाचारी के नेतृत्व में 1937 के चुनाव में कांग्रेस सरकार बनी।

विभाजन हेतु उन्होंने वर्ष 1944 में ‘सी.आर. प्लान’ तैयार किया। वर्ष 1946-47 में जवाहर लाल नेहरु के अंतरिम सरकार में मंत्री भी रहे।

देश की आजादी (15 अगस्त 1947) के बाद बंगाल के विभाजन पश्चात् चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को पश्चिम बंगाल का प्रथम राज्यपाल बनाया गया था।

10 नवम्बर से 24 नवम्बर 1947 तक तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन (भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) के अनुपस्थिति में कार्यकारी गवर्नर जनरल रहे तथा जून 1948 से 26 जनवरी 1950 तक स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल (भारत के अंतिम गवर्नर जनरल) रहे।

अंतरिम सरकार में वह मंत्री बने। मांउट बेटन के बाद प्रथम भारतीय गर्वनर जनरल बने। वर्ष 1959 में उन्होंने स्वतंत्र पार्टी का गठन किया।

राजगोपालाचारी का निधन (मृत्यु) 17 दिसंबर, 1972 को मद्रास गवर्नमेंट हॉस्पिटल में स्वास्थ्य संबंधी बीमारी से हुआ।

मोतीलाल नेहरू का जीवन परिचय (जीवनी) | Motilal Nehru Biography in Hindi

भारतीय अधिवक्ता मोतीलाल नेहरू का जन्म ‘6 मई, 1861’ को आगरा में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘गंगाधर नेहरू’ और माता का नाम ‘जीवरानी’ था।

गंगाधर नेहरू, पंडित मोतीलाल नेहरू के पिता और पंडित जवाहरलाल नेहरू के दादा थे।

मोती लाल नेहरू की दो शादियां हुई थीं। उनके दो कन्याएँ थीं एवं ‘जवाहरलाल नेहरू’ उनके एकमात्र पुत्र थे।

बडी बेटी का नाम ‘विजयलक्ष्मी’ था, जिन्हें विजयलक्ष्मी पण्डित और छोटी बेटी का नाम ‘कृष्णा’, जो बाद में कृष्णा हठीसिंह के नाम से प्रसिद्ध हुई।

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मोतीलाल नेहरू पेशे से इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। इनकी पत्नी का नाम ‘स्वरूप रानी’ थी, जो बाद में कांग्रेस और होमरूल लीग से जुड़े।

उनकी शैक्षणिक शिक्षा में कैम्ब्रिज से ‘बार ऐट लॉ’ की उपाधि ली और इलाहाबाद हाईकोर्ट की अंग्रेजी न्यायालयों में अधिवक्ता/वकालत किया। 

वर्ष 1927 में, सर्वदलीय सम्मेलन ने साइमन कमीशन के विरोध में एक समिति बनाई, जिसे भारत का संविधान बनाने का काम सौंपा गया।

वर्ष 1928 में इस समिति रिपोर्ट को ‘नेहरू रिपोर्ट’ (Neharu Report) के नाम से भी जाना जाता है।

गांधीजी के आह्वान पर 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने वकालत छोड़ दी। 

जालियावाला बाग कांड की जांच हेतु नियुक्त कांग्रेस आयोग के अध्यक्ष थे।

वर्ष 1919 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन और वर्ष 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।

भारतीय लोगों के पक्ष में इन्होंने ‘इंडिपेंडेंट’ नामक पत्र भी प्रकाशित किया था। जिसे आजादी के आंदोलन में ‘इंडिपेंडेट अखबार’ नाम से जाना जाता है।

उन्होंने 1923 में देशबंधु चितरंजन दास के साथ मिलकर ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना/गठन किया।

वर्ष 1930 में मोतीलाल नेहरू के अलीशान घर इलाहाबाद में बनवाया था। जिसे नाम ‘आनंद भवन’ के नाम से जाना जाता है।

मोतीलाल नेहरू की मृत्यु 6 फरवरी, 1931 को लखनऊ (उत्तरप्रदेश) में हुआ।

मोतीलाल नेहरू की कुछ प्रसिद्ध/महत्वपूर्ण पुस्तकें द स्ट्रगल फाॅर स्वराज

चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय (जीवनी) | Chandra Shekhar Azad Biography in Hindi

चन्द्रशेखर आजाद एक महान भारतीय क्रांतिकारी देशभक्त, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक एवं लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे।

इनका जन्म स्थान मध्य प्रदेश में अलीराजपुर जिले स्थित भाबरा ग्राम में 23 जुलाई 1906 को कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

आज यह भाबरा ग्राम अब ‘आजाद नगर’ के रूप में जाना जाता है।

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उनके पिता का नाम ‘पं. सीताराम तिवारी’ और माता का नाम ‘जगदानी देवी’ था। पिता स्वाभिमानी, ईमानदार, साहसी और वचनबद्ध व्यक्तित्व के थे।

इनके पूर्वज (पैतृक निवास) उत्तरप्रदेश (बदरका) के उन्नाव जिले के रहने वाले थे।

प्रारंभिक शिक्षा पिता के करीबी मित्र पं. मनोहर लाल त्रिवेदी जी द्वारा संस्कृत पाठशाला में ‘संस्कृत भाषा’ से हुई। जिसमें उनका लगाव बिल्कुल नहीं था।

चंद्रशेखर का ‘आजाद’ नाम उनके बचपन में भारत माता को स्वतंत्र कराने एवं मातृभूमि की भावना अत्याधिक थी। जिस कारण उन्होंने अपना स्वयं का नाम चंद्रशेखर ‘आजाद’ रख लिया।

वर्ष 1920-21 में गांधीजी के ‘असहयोग आंदोलन’ से जुड़े। साथ ही कानून भंग आंदोलन में भी योगदान दिया था।

वे क्रान्तिकारियों का गढ़- बनारस में ‘प्रणवेश चटर्जी, राम प्रसाद बिस्मिल और मन्मथनाथ गुप्त’ के साथ क्रान्तिकारी दल सदस्य बने और सक्रिय से जुड़े रहे।

जिसे ‘हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ’ (HRA- Hindustan Republican Association) क्रांतिकारी दल के नाम से जाना जाता था। 

वर्ष 1924 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ) की स्थापना ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’, ‘प्रणवेश चटर्जी’, ‘शचींद्रनाथ सान्याल’ और ‘शचीन्द्रनाथ बख्शी’ द्वारा की गयी थी।

वर्ष 1925 के हुई ‘काकोरी कांड (षड्यंत्र)’ के बाद अंग्रेजों द्वारा ‘रामप्रसाद बिस्मिल’, ‘अशफाकउल्ला खान’, ‘ठाकुर रोशन सिंह’ और ‘राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी’ को गिरफ़्तार कर फांसी की सजा सुनाई गई।

इस काकोरी कांड घटना पश्चात् ‘चंद्रशेखर आजाद’, ‘केशव चक्रवती’ और ‘मुरारी शर्मा’ ही बचे थे।

वर्षं 1928 में चंद्रशेखर आजाद ने ‘भगत सिंह’, ‘राजगुरु’ और ‘सुखदेव’ की मदद से मिलकर ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का नाम पुनर्गठित कर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन‘ में बदल दिया।

जिसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक सिद्धांत पर पूर्ण स्वतंत्रता पाना था।

वर्ष 1925-26 में ‘काकोरी ट्रेन डकैती (काकोरी कांड ‘षड्यंत्र’)’ व वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास और 1928 में लाहौर में हुई लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने ‘जे.पी. सॉन्डर्स को गोली मारने’ जैसी घटनाओं में शामिल थे।

न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने 15 वर्षीय चंद्रशेखर का नाम पूछे जाने पर अपना नाम- ‘आजाद’, पिता का नाम – ‘स्वाधीनता/स्वतंत्रता’ और निवास स्थान- ‘जेल /जेल की कोठरी’ बताया था।

जिस पर उन्हें न्यायाधीश द्वारा 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई। कोड़े के हर वार पर ‘वन्दे मातरम्‌’ एवं ‘भारत माता की जय’ का स्वर लगाया था।

चन्द्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी, 1931 में ‘अल्फ्रेड पार्क’ (आज- चंद्रशेखर आजाद पार्क), इलाहाबाद में बोल्शेविक क्रांति जैसी समाजवादी क्रांति का आह्वान की तर्ज पर हुई।

ब्रिटिश पुलिस द्वारा घिरे जाने पर पार्क में हुए पुलिस मुठभेड़ में स्वयं को अंतिम गोली मारकर मातृभूमि के लिए शहीद हो गए। उन्हें ब्रिटिश सरकार ‘न पकड़ सकी और न ही फांसी की सजा’ दे सकी।

खुदीराम बोस का जीवन परिचय (जीवनी) | Khudiram Bose Biography in Hindi

खुदीराम बोस का जन्म, पश्चिम बंगाल में मेदिनीपुर ज़िला के बहुवैनी ग्राम में 3 दिसंबर, 1889 को हुआ था। उनके पिता का नाम ‘बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस’ और माता का नाम ‘लक्ष्मीप्रिया देवी’ था।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में प्राण न्योछावर करने वाले भारत का प्रथम शहीद, सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं। 18 साल की कम उम्र में ही 11 अगस्त, 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी हुई।

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स्वदेशी आंदोलन में भाग लेकर रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने। 1905 में बंगाल विभाजन आंदोलन में भाग लिया।

खुदीराम बोस बंगाल में सक्रिय प्रमुख क्रांतिकारी संगठनों की गुप्त संस्था ‘युगान्तर’ से संबंधित थे। इस संस्था प्रमुख नेता ‘अरविन्द घोष’, ‘बारीन घोष’, ‘उल्लासकर दत्त’ आदि थे।

वर्ष 1906 में, खुदीराम बोस ने मिदनापुर में औद्योगिक और कृषि प्रदर्शनी में प्रतिबंध की अवहेलना में ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ का नारा दिया।

28 फरवरी 1906 को खुदीराम बोस गिरफ्तार हुए एवं कैद से छूट निकले।

6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया।

मुजफ्फरपुर के ‘सेशन जज किंग्सफोर्ड’ को मारने की योजना बनाया और अपने साथी ‘प्रफुल्लचंद चाकी’ के साथ मिलकर 30 अप्रैल 1908 को जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया।

जिस पर किंग्सफोर्ड बच गए, लेकिन उनके बेटी सहित दो यूरोपीय महिला कैनेडी मारे गए।

इस घटना में अंग्रेज पुलिस द्वारा वैनी रेलवे स्टेशन में दोनों को घेरा गया। वर्ष 1908 के इस पुलिस मुठभेड में खुदीराम बोस पकड़े गए और प्रफुल्लचंद चाकी ने स्वयं को गोली मारकर शहीद हो गए।

वीर क्रांतिकारी खुदीराम बोस की मृत्यु 11 अगस्त, 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में हाथ में गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी में झुल मातृभूमि के लिए 18 वर्ष की कम आयु में शहीद हो गए।

लाला हरदयाल का जीवन परिचय (जीवनी) | Lala Har Dayal Singh Mathur Biography in Hindi

भारतीय राष्ट्रवादी क्रांतिकारी नेता थे। इनका जन्म 14 अक्टूबर, 1884 को दिल्ली के मध्यमवर्ती कायस्थ पंजाबी परिवार में हुआ था।

इनके पिता का नाम ‘गौरी दयाल माथुर’ और माता का नाम श्रीमती ‘भोरी देवी’ था। पिता उर्दू व फ़ारसी भाषा के विद्वान थे।

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इनका पूरा नाम ‘लाला हरदयाल सिंह माथुर’ है एवं इनकी पत्नी का नाम ‘सुंदर रानी’ था।

अमेरिका में 25 जून, 1913 ई. को इन्होंने ‘गदर पार्टी’ (Gadar Movement) की स्थापना किया। जो ‘गदर नामक पत्र’ से लिया गया था जिसमे हरदयाल (lala hardayal) महासचिव थे।

गदर पार्टी का जन्म अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के ‘एस्टोरिया’ शहर से हुआ था।

जर्मनी में इन्होंने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस कमेटी’ की स्थापना किया था। वर्ष 1913 में एस्टोरिया की ‘हिन्दुस्तानी एसोसिएशन’ का गठन किया। सरकार का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहे।

4 मार्च 1939 को अमेरिका के फिलाडेल्फिया में कुर्सी में बैठा-बैठा उनका रहस्यात्मक निधन (मृत्यु) हो गया था।

बाद के वर्षो में वे भारत के पक्ष में समर्थन जुटाने का प्रयत्न करते रहे।

हरदयाल (Lala Hardayal) की कुछ प्रसिद्ध किताबे– राइटिंग ऑफ़ लाला हरदयाल (1920), अमृत में विष (1922), लाला हरदयालजी के स्वाधीन विचार (1922), हमारी शैक्षणिक समस्या (1922), आत्म संस्कृति के संकेत (1934), शिक्षा पर विचार/सोच (1969), बोधिसत्व सिद्धांत (1970), विश्व धर्मो की झलक, हिन्दू दौड़ की सामाजिक जीत, जर्मनी और टर्की के 44 माह।

फिरोज़शाह मेहता का जीवन परिचय (जीवनी) | Pherozeshah Mehta Biography in Hindi

फिरोजशाह मेहता भारत के एक स्वतंत्रा सेनानी, न्यायविद तथा पत्रकार थे। भारतीय राजनीति में दादाभाई नौरोजी के बाद फिरोजशाह मेहता का नाम उदारवादी नेताओं की सूची में प्रमुख था।

इन्हें उदारवादी राजनीतिज्ञों में ‘दादाभाई नौरोजी के उत्तराधिकारी’ भी कहा जाता है।

फिरोज़शाह मेहता का जन्म 4 अगस्त, 1845 को बंबई (मुंबई) के पारसी परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम ‘सर फिरोजशाह मेहरवांजी मेहता’ था।

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बम्बई के फिरोजशाह वकालत करने के बाद राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रहे। किसानों के पक्षकार एवं आर्म्स एक्ट, प्रेस एक्ट का कड़ा विरोधी थे।

21 जनवरी 1883 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन की स्थापना किया एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे।

ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन शाखा, बंबई के सचिव रहे। साथ ही वर्ष 1872 में बम्बई नगर निगम के मेयर भी चुने गए।

फिरोजशाह मेहता ने 1872 में ‘नगरपालिका अधिनियम (म्युनिसिपल एक्ट)’ की रूपरेखा तैयार किया।

जिसके कारण उनको ‘मुंबई नगरपालिका के संविधान के निर्माता’ और ‘बंबई स्थानीय शासन (मुंबई महानगरपालिका) के जनक’ कहा जाता था।

वर्ष 1890 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गये एवं 1892 में केन्द्रीय परिषद के सदस्य भी रहे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से वे सहमत थे एवं पशु वध पशु बलि के कट्टर विरोधी थे।

इन्होंने वर्ष 1913 को ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ (The Bombay Chronicle) नामक अखबार भी निकाला/प्रकाशित किया।

पारसी देशभक्त फिरोजशाह मेहता की मृत्यु 5 नवम्बर 1915, मुंबई में हुआ था।

भारतीय सिविल सेवा में नियुक्ति के बाद में वर्ष 1892 में इग्लैण्ड से लौटकर अरविंद बाद में क्रांतिकारी गतिविधियों में लग गये।

नेशनल काॅलेज के प्रिंसिपल बने और मुगान्तर नामक पत्र प्रकाशित/निकाला गया था।

कर्मयोगी और धर्म नामक साप्ताहिक पत्र भी प्रकाशित किये। अलीपुर षड़यंत्र केस से जुड़े हुये थे।

बाद में सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया और पांडिचेरी में योगी जीवन अरविंदों आश्रम में व्यतीत किये थे।

एक समाजवादी नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद उन्होंने वर्ष 1934 में कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना में सक्रिय भूमि का निभाई थी।

इन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट नामक पत्र प्रकाशित/निकाली थी।

स्वतंत्रता के उपरांत भारतीय सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। उन्होंने नेपाल व गोवा में भी आंदोलन चलाया था।

हिन्दी भाषा के लिये भी उन्होंने संघर्ष किया।

एक प्रतिष्ठित वकील जिसने ऐनी बेसेंट को सेन्ट्रल हिन्दू काॅलेज विश्वविद्यालय बनाने में सहायता प्रदान किये थे।

इन्होंने होम रूल लीग में भी भाग लिया था।

वर्ष 1928 में नेहरू रिपोर्ट तैयार करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।

इन्होंने गोलमेज सभाओं में भी भाग लिया था।

बिहार प्रांत के निवासी जय प्रकाश जी अपनी शिक्षा पटाना तथा अमेरिका में पूरी की।

वे कार्ल माक्र्स की विकासधारा से बहुत प्रभावित हुये थे।

वर्ष 1929 में कांग्रेस के सदस्य बनाये गये।

वर्षं 1932 में नागपुर अवज्ञा आंदोलन के समय गिरफ्तार किया गया।

वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार किया गया।

इन्हें लोकनायक की उपाधि से नवाजा गया था।

8 अक्टूबर 1979 को इनका निधन हो गया।

प्रिंस की उपाधि से सम्मानित ब्रम्ह समाज के प्रमुख सदस्य तत्वबोधिनी सभा के प्रवर्तक तथा वर्ष 1843 में तत्वबोधिनी पत्रिका के सम्पादक रहें।

देवेन्द्रनाथ टैगोर अपनी शालीनता, दानशीलता विद्वता-उच्च चरित्र के लिये जाने जाते थे।

रवीनद्र नाथ तथा अवनीन्द नाथ इनके पुत्र थे।

स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

स्वतंत्रता सेनानी एवं बिहार के कांग्रेसी नेता थे।

वर्ष 1977-79 के बीच भारत के उप प्रधानमंत्री संविधान सभा के सदस्य 1952 से मृत्यु पर्यन्त सांसद थे।

स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्री मंडल में श्रम मंत्री थे।

वर्ष 1952 से 1977 के बीच अनेक मंत्रालयों की जिम्मेदारी, विधान और कुशल प्रशासक रहे थे।

ये महान क्रांतिकारी थे।

वर्ष 1899 को इन्होंने मित्र मेला की स्थापना किया था।

जिसका वर्ष 1904 में नाम बदलकर अभिनव भारत सोसाइटी किया गया।

वर्ष 1906 में वे इंग्लैण्ड में श्याम जी कृष्ण वर्मा के नेतृत्व में फ्री इंडिया सोसाइटी में सक्रिय हुये।

वर्षं 1910 में इन्हें गिरफ्तार किया गया। वर्ष 50 वर्ष का कारावास दिया गया।

वर्ष 1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम नामक पुस्तक लिखे। भारत की प्रथम सरकारी पुस्तक के नाम से जाना गया।

भारत के प्रमुख अध्यक्षों और संस्था का नाम

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