राजकोषीय नीति क्या है? व उसके प्रकार

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भारत में राजकोषीय नीति (Fiscal Policy in India) – भारत में राजकोषीय नीति (Fiscal Policy in Hindi) एक मार्गदर्शक शक्ति है, जो सरकार को यह तय करने में मदद करती है कि उसे आर्थिक गतिविधि को समर्थन देने के लिए कितना पैसा खर्च करना चाहिए और अर्थव्यवस्था से पहियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसे कितना राजस्व अर्जित करना चाहिए।

सरकारी नीति, जो सरकारी खर्च या करों में बदलाव के माध्यम से अर्थव्यवस्था की दिशा को प्रभावित करने का प्रयास करती है।

राजकोषीय नीति (Fiscal Policy), सरकारी खर्च और कराधान के उपयोग, अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिए है। सरकारों राजकोषीय नीति का उपयोग मूल्य स्थिरता, पूर्ण रोजगार और आर्थिक विकास के आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयास में अर्थव्यवस्था में कुल मांग के स्तर को प्रभावित करने के लिए।

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India Fiscal Policy in Hindi

राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) क्या है?

एक वित्तीय वर्ष में सरकार की सभी प्रकार की प्राप्तियों एवं उनके व्यय से संबंधित नीति, राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) कहलाती है। इसके अंतर्गत करारोपण (Taxation), ऋण (Loan), अनुदान (Funds), योजनागत व गैर-योजनागत बजट राजकोषीय नीति का मूर्त रूप होता है।

मुख्य रूप से राजकोषीय नीति में चार (4) बातों को शामिल किया जाता है-

  1. सरकार की बजट नीति (Budgetary Policy)
  2. सरकार की करारोपण नीति (Taxation Policy)
  3. सरकॉर की ऋण नीति (Public Debt Policy)
  4. सरकार की व्यय नीति (Expenditure Policy)

राजकोषीय नीति का उद्देश्य | Objective of Fiscal Policy

राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य क्या है? (Objective of Fiscal Policy in India) – किसी भी देश की राजकोषीय नीति का मुख्य उद्देश्य सैद्धांतिक तौर पर, कार्यात्मक वित्त प्रबंधन (Functional Finance Management) और कार्यशील वित्त प्रबंधन प्रदान करना है।

दूसरे शब्दों में, राजकोषीय नीति का मुख्य कार्य आर्थिक विकास के लिए पर्याप्त और आवश्यक धन का प्रावधान/ व्यवस्था करना है।

राजकोषीय नीति के उद्देश्य राष्ट्र के विकास के लिए विकासात्मक परिस्थितियों, आवश्यकताओं और राष्ट्र के विकास की स्थिति के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

सामान्य तौर पर अल्प-विकसित और विकासशील देशों की राजकोषीय नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नानुसार हो सकते हैं:-

  1. राष्ट्रीय आय में समानता/पुनर्वितरण(Redistribution of National Income)
  2. पूंजी निर्माण (Capital Formation)
  3. कीमतों में स्थिरता (Price Stability)
  4. बेरोजगारी में कमी (Removal of Unemployment)
  5. आर्थिक स्थायीत्व (Economic Stability)

राजकोषीय नीति के प्रकार | Types of Fiscal Policy

राजकोषीय नीति तीन प्रकार की होती है- तटस्थ नीति, विस्तारवादी नीति और संविदात्मक नीति

  • तटस्थ नीति (Neutral Fiscal Policy) – इस प्रकार की नीति आमतौर पर तब की जाती है जब कोई अर्थव्यवस्था संतुलन में होती है। इस उदाहरण में, सरकारी व्यय पूरी तरह से कर राजस्व द्वारा वित्त पोषित है, जिसका आर्थिक गतिविधि के स्तर पर एक तटस्थ प्रभाव पड़ता है।
  • विस्तारवादी नीति (Expansionary Policy) – इस प्रकार की नीति आमतौर पर आर्थिक गतिविधियों के स्तर को बढ़ाने के लिए मंदी के दौरान की जाती है। इस उदाहरण में, सरकार करों में इकट्ठा होने की तुलना में अधिक पैसा खर्च करती है।
  • संविदात्मक नीति (Contractual Fiscal Policy) – इस प्रकार की नीति सरकारी ऋण का भुगतान करने और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए की जाती है। इस मामले में, सरकारी व्यय कर राजस्व से कम है।

संविदात्मक राजकोषीय नीति में, सरकार करों के माध्यम से अधिक पैसा इकट्ठा करती है, जितना वह खर्च करती है। यह नीति आर्थिक उछाल के समय में सबसे अच्छा काम करती है।

राजकोषीय नीति कौन बनता है ?

जिस प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा मौद्रिक नीति (Monetary Policy) को बनाता है। उसी तरह से राजकोषीय नीति (Fiscal Policy in India) सरकार द्वारा बनाया जाता है।

जहाँ, राजकोषीय नीति से तात्पर्य वित्तीय प्रबंधन (Financial Management) के लिए विशेष उपायों को अपनाना है। इसकी मदद से, सरकार खर्चों और कर दरों (Tax Rates) के स्तर को समायोजित करती है।

राजकोषीय घटक कौन-कौन से है?

किसी भी देश की आर्थिक संरचना के लिए राजकोषीय नीति एक महत्वपूर्ण घटक होता है। राजकोषीय नीति के कुछ प्रमुख घटक हैं- बजट (Budget), सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure), कराधान (Taxation), राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) और सार्वजनिक ऋण (Public Debt)

राजकोषीय समेकन क्या है ?

राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation) एक ऐसी रणनीति (शब्द) है, जिसका उपयोग रणनीतियों के निर्माण का वर्णन करने के लिए किया जाता है। साथ ही जिसका उद्देश्य अधिक ऋण के संचय को कम करते हुए नुकसान को कम करना है।

किसी भी प्रकार की सरकारी राजकोषीय नीति के लिए राजकोषीय समेकन (Treasury Consolidation) महत्वपूर्ण है, जो ऋण के उन्मूलन पर केंद्रित होता है।

राजकोषीय नीति का निर्धारण कौन करता है ?

भारत में वित्त मंत्रालय द्वारा बजट का राजस्व अनुमान तैयार किया जाता है। राजकोषीय नीति केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा तय की जाती है। जिसमें सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure), राजस्व (Revenue) और आर्थिक मामले (Economic Affairs) वित्त मंत्रालय का विभाग अंतर्गत निर्धारित होता है।

राजकोषीय नीति का निर्माण कैसे होता है ?

राजकोषीय नीति (Fiscal Policy in India) को बजट के माध्यम से भारत सरकार के वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) द्वारा तैयार और कार्यान्वित किया जाता है।

वित्त मंत्री बजट के माध्यम से वर्ष में एक बार राजकोषीय नीति (Fiscal Policy in India) प्रस्तुत करते हैं।

राजकोषीय नीति कराधान (Taxation) और कर (Tax), ऋण (Loan) और सार्वजनिक व्यय (Expenditure) जैसे उपकरणों की मदद से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करती है।

कर (Tax) क्या है?

कर क्या है?(Kar Kya Hai | Tax in Hindi) – कर (Tax), करदाता द्वारा दिया गया एक अनिवार्य अंशदान (Contribution) होता है, जो आय और धन संपत्ति की असमानता को कम करके और आर्थिक स्थिरता और विकास को प्राप्त करके उच्च रोजगार के स्तर जैसे सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।

दूसरे शब्दों में, कर (Tax) एक ऐसा अंशदान है, जो आवश्यक रूप से करदाता द्वारा सरकार को उसके द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार भुगतान करता है। जैसे

  • करारोपण(Taxation)
  • शुल्क(Duty)
  • उपकर(Cess) और अधिभार (Surcharge) – ये दोनों ही कर के उपर लगने वाले कर है। इनमें से राज्यों को कोई हिस्सा नहीं दिया जाता, में पूरी तरह से केन्द्र सरकार के पास ही रहते है।

कर के प्रकार | Types of Tax

कर के 2 प्रकार (Types of Tax) होते है –

  • Direct Tax– यदि कर दाता करो का बोझ किसी अन्य व्यक्ति अथवा संस्था को स्थानांतरित नहीं कर पाता है, तो Direct Tax कहलाता है। जैसे- आयकर (Income Tax), संपत्ति कर (Property Tax), कंपनी कर (Company Tax).
  • Indirect Taxयदि करदाता करों का बोझ किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को स्थानांतरित कर देता है तो Indirect Tax कहलाता है।

किसी व्यक्ति अथवा संस्था पर प्रत्यक्ष कर लगते है जबकि अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं व सेवाओं पर लगता है।

Direct Tax System के प्रकार

Direct Tax System तीन प्रकार का होता है –

  • आरोही कराधान प्रणाली(Progressive Tax System) – यदि आय बढ़ने के साथ टैक्स की दर बढ़ती है, PTS (Progressive Tax System) कहलाता है।
कुल आयकर प्रतिशत
2 लाख0 प्रतिशत
2-5 लाख10 प्रतिशत
5-10 लाख20 प्रतिशत
10 लाख से उपर30 प्रतिशत
  • प्रतिगामी कर प्रणाली(Regressive Tax System) – यदि आय बढ़ने के साथ कर की दर कम होती है उसे RTS (Regressive Tax System) कहते है।
  • आनुपातिक कर प्रणाली(Proportional Tax System) – जिसमें कर की दर निश्चित होती है। एक Flat Tax के रूप में भी जाना जाता है।

Indirect Tax के प्रकार

  • Ad Valorem Tax (मूल्यानुसार) – वस्तुओं के मूल्य के आधार पर लगने वाला कर
  • Specific Tax (विशिष्ट कर) – किसी वस्तु के भौतिक गुण के आधार पर लगाने वाला कर। जैसे – लंबाई, भार, आयतन के आधार पर लगने वाला कर
  • उपकर एवं अधिभार
  • अतिरिक्त सीमा शुल्क
  • वस्तु व सेवाओं के पारगमन पर टैक्स
  • टेलीकाॅम लाइसेंस फीस
  • विद्युत आपूर्ति कर
  • केन्द्रीय बिक्रीकर (CST – Central Sales Tax) – 4% से 2% 

राज्य सरकार के कर –

  • बिक्रीकर (State Vat)
  • मनोरंजन कर (Entertainment Tax)
  • विलाशिता कर (Luxury Tax)
  • स्टाम्प कर (Stamp Tax)
  • वाहन पंजीकरण शुल्क (Vehicle Registration Fee)
  • भूमि पंजीकरण शुल्क (Land Registration Fee)
  • उपकर एवं अधिभार (Cess and Surcharge)

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)

प्रस्तावित GST, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) एवं राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) दो प्रकार का होगा। 22 मार्च 2011 को भारतीय संसद के समक्ष 115वां संसोधन पेश किया गया।

GST संशोधन के प्रावधान

  • एक जीएसटी परिषद् (GST Council) होगी। केन्द्रीय वित्त मंत्री इसके अध्यक्ष तथा केन्द्र सभी राज्यों के वित्तमंत्री इसके सदस्य होंगे।
  • जीएसटी परिषद् GST की दरें निर्धारण करेगी।
  • 75 प्रतिशत के बहुमत से GST परिषद् निर्णय लेगी।
  • GST विवाद निपटारा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा जो 3 सदस्यी होगा। इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का भूतपूर्व न्यायधीश या उच्च न्यायलय का मुख्य न्यायधीश होगा।
  • अन्य सदस्यों में एक कानूनी मामलों का विशेषज्ञ तथा दूसरा आर्थिक मामलों का विशेषज्ञ होगा। यह प्राधिकरण केन्द्र व राज्य के मध्य GST संबंधी विवादों का निपटारा करेगा।
  • GST पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्रीय विधानमण्डल तथा राज्य विधानमंडल दोनों को होगा तथा टकराव की स्थिति में केन्द्रीय कानून को वरीयता दी जाएगी।
  • आयात शुल्कों से संबंधित तथा अंतर्राज्यीय व्यापार से संबंधित मामलों में कानून बनाने का अधिकार केवल केन्द्र को होगा।
  • इस बिल को संसद में विशेष बहुमत से पारित होने के साथ-साथ आधे राज्यों की विधानमंडलों का समर्थन भी आवश्यक है।

जीएसटी के लाभ – (GST Rate 8%)

  • Tax System का सरलीकरण होगा। इससे Tax System में पारदर्शिता अधिक होगी।
  • कर चोरी कम होगी, जिससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा।
  • GST की दर कम होगी, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होगा, उन्हें कम मूल्य पर वस्तुएं उपलब्ध होगी।
  • GST के कारण GDP में 2 प्रतिशत अतिरिक्त ग्रोथ का अनुमान आ रहा है।
  • इससे निर्यातों में 6 प्रतिशत की अतिरिक्त वृद्धि की उम्मीद की जा रही है।

– GST मैन्यूफेक्चरिंग (विनिर्माण) लागत पर लगाया जाएगा।

– उत्पादन के अंतिम चरण में GST लगाया जाएगा। इससे वस्तु का मूल्य कम होगा।

– GST लागू होने पर भारत एक साझा बाजार में रूपांतरित हो जाएगा।

– Inspecter राज में कमी आएगी।

जीएसटी लागू नहीं होने के कारण –

राज्यों की असहमति के कारण GST लागू नहीं हो पा रहा है।

राज्यों की आशंकाएं

  • सभी राज्यों को यह आशंका है कि उनकी कर स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी क्योंकि वर्तमान में राज्य सरकार बिक्री कर की दरों में स्वेच्छा से बदलाव कर सकते है साथ में उन सभी करों में भी जो राज्य द्वारा लगाए जाते है। GST लागू होने के बाद जीएसटी दरों (GST Rates) का निर्धारण जीएसटी परिषद् (GST Council) द्वारा किया जाएगा।
  • GST की प्रस्तावित दर कम होने की संभावना है जिससे राज्यों को आशंका है कि उन्हें वित्तीय हानि होगी। यद्यपि केन्द्र ने राज्यों को आश्वस्त किया है कि राज्यों को राजस्व घाटा होता है तो इसकी भरपाई केन्द्र करेगा।
  • CST विवाद के कारण भी राज्य जीएसटी (SGST) लागू नहीं करना चाहते है।
  • GST सभी राज्यों को एक साथ लागू करना अनिवार्य है किन्तु राज्य अपनी सुविधानुसार क्रमिक रूप से GST लागू करना चाहते है। यद्यपि बिल में ये प्रावधान कर दिया गया है कि राज्य अपनी सुविधानुसार GST लागू कर सकते है।
  • कई राज्यों का मानना है कि उनके पास पर्याप्त तंत्र विकसित नहीं है।
  • छोटे राज्यों को आशंका है कि उन्हें राजस्व की हानि होगी। क्योंकि उनमें टैक्स की दर कम होगी तथा टैक्स का दायरा बढ़ने की संभावना कम होगी।
  • राज्यों की इन आशंकाओं का कोई तार्किक आधार नहीं है क्योंकि GST की दर केन्द्र द्वारा निर्धारित न होकर GST परिषद् द्वारा तय होगी तथा GST परिषद में प्रत्येक राज्य का प्रतिनिधि होगा।
  • राज्यों की राजस्व हानि की आशंका भी अतार्किक है क्योंकि GST एक आधुनिकतम कर प्रणाली है। अधिकतर देश इसका प्रयोग कर रहे है। अतः इससे राज्यों का राजस्व बढ़ेगा।

राज्य की सहमति प्राप्त करने हेतु वित्त मंत्रियों की एक समिति का गठन किया गया है। जिसके अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर है।

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