हिंदी वर्णमाला, स्वर, व्यंजन एवं भेद

प्रतियोगी परीक्षाओं एवं प्रारंभिक स्कूल शिक्षा (कक्षा 5 से 10) में पूछे जाने वाले सामान्य हिंदी व्याकरण (वर्णमाला, स्वर, व्यंजन एवं उनके भेद) की सामान्य ज्ञान (हिंदी वर्णमाला अक्षर एवं परिभाषा, उदाहरण) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी (Hindi Varnamala with Vowels and Consonants Notes) दी गई है।

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Hindi Varnamala Notes about Vowels and Consonants

प्रारंभिक स्कूल शिक्षा में कक्षा 5 से 10 तक के हिंदी वर्णमाला, अक्षरों, स्वरों, व्यंजनों और उनके भेद (Hindi Vowels and Consonants) के बारे में सामान्य ज्ञान इस प्रकार है।

हिंदी व्याकरण के वर्णमाला, स्वर, व्यंजन क्रम इस प्रकार है –

वाक्यपूर्ण रूप
उपवाक्यवाक्यों से छोटी इकाई ही उपवाक्य कहलाती है।
पदबंधउपवाक्य में छोटी इकाई पदबंध कहलाता है।
पद (शब्द)पदबंध से छोटी इकाई को पद कहते है।
अक्षरपद से छोटी इकाई अक्षर कहलाता है।

अक्षर से छोटी रूप ध्वनि है। भाषा की सार्थक इकाई वाक्य होती है, जबकि भाषा की सबसे छोटी इकाई ‘ध्वनि या वर्ण’ होती है।

वर्ण (ध्वनि) उच्चारण के आधार पर भाषा की सबसे छोटी इकाई है, जबकि वर्ण लेखन के आधार पर भाषा की सबसे छोटी इकाई है।

वर्ण के खण्ड नहीं किये जा सकते और वर्णो के मेल से अक्षर बनते है, अतः राम शब्द में दो अक्षर राम – रा, म है और इसमें चार वर्ण है – र् + आ + म् + अ

नोट – वर्णो के व्यवस्थित समूहों को वर्णमाला कहते है, उच्चारण के आधार पर वर्णमाला में 45 वर्ण होते है, जिसमें से 10 स्वर और 35 व्यंजन होते है। कहीं-कहीं पर 11 स्वर भी मिलते हैं।

लेखन के आधार पर वर्णमाला में 52 वर्ण होते है, जिसमें से 13 स्वर, 35 व्यंजन व 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।

हिन्दी व्याकरण में वर्णमाला के प्रकार को 02 भागों में बांटा गया है-

  • स्वर (Vowels)
  • व्यंजन (Consonants)

स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण या बिना किसी बाधा के बोले जाने वाले वर्ण ‘स्वर’ (Vowels) कहलाते है।

उदा. – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः

मात्रा या उच्चारण (समय) के आधार पर स्वर के 03 भेद/ प्रकार होते हैं।

  • हास्व स्वर
  • दीर्घ स्वर
  • प्लुत स्वर

1) हास्व स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में बहुत समय अर्थात् एक मात्रा का समय लगता है।
उदा. – अ, इ, उ

2) दीर्घ स्वर – इनके उच्चारण में हास्य स्वर  से दुगुना अर्थात् 02 मात्रा का समय लगता है।
उदा. – आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ

3) प्लुत स्वर – जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से अधिक समय लगता है अर्थात् 03 मात्राओं का समय लगता है। इसलिए इसे त्रिमासिक स्वर भी कहते है, इसे तीन ‘‘3‘‘ के रूप में लखते हैं।
उदा. – ओउम्

जीभ के उपयोग के आधार पर स्वर के 03 भेद/ प्रकार होते हैं।

  • अग्र स्वर
  • मध्य स्वर
  • पश्च स्वर

1) अग्र स्वर – इसके उच्चारण में जीभ का अगला भाग कार्य करता है।
उदा. – इ, ई, ए, ऐ

2) मध्य स्वर – जिनके उच्चारण में जीभ का मध्य वाला भाग कार्य करता है।
उदा.  अ

3) पश्च स्वर – जिनके उच्चारण में जीभ का पिछला भाग कार्य करता है।
उदा. – आ, उ, ऊ, ओ, औ

मुख खुलने के आधार पर स्वर के 04 भेद/ प्रकार होते हैं।

  • विवृत
  • अर्ध विवृत
  • संवृत
  • अर्ध संवृत

1) व्रिवृत – जिनके उच्चारण में मुख पूरा खुलता है।
उदा. – आ

2) अर्द्ध व्रिवृत – जिनके उच्चारण में मुख आधा खुलता है।
उदा. – अ, ऐ, औ

3) संवृत – जिनके उच्चारण में मुख द्वार लगभग बंद रहता है।

4) अर्द्ध संवृत – जिनके उच्चारण में मुख द्वारा लगभग आधा बंद रहता है।
उदा. ए , ओ

होठों के आधार पर स्वर के 02 भेद/ प्रकार होते हैं।

  • अवृतमुखी
  • वृतमुखी

1) अवृतमुखी– जिनके उच्चारण में होठ गोलाकार नहीं होते है।
उदा. अ, आ, इ, ई, ए, ऐ

2) वृतमुखी– जिनके उच्चारण में होठ या मुख गोलाकार हो जाता है।
उदा. उ, ऊ, ओ, औ

नाक व मुख से हवा निकलने के आधार पर स्वर के 02 भेद/ प्रकार होते हैं:-

  • निरनुनासिक
  • अनुनासिक

1) निरनुनासिक – जिनके उच्चारण में हवा केवल मुख से निकलती है, नाक से नहीं।
उदा. आ, इ, उ

2) अनुनासिक – जिनके उच्चारण में हवा मुख के साथ-साथ नाक से भी निकलती है।
उदा. अं, ँ वाले वर्ण

स्वर की सहायता से बोले जाने वाले वर्णो को ‘व्यंजन’ (Hindi Consonants) कहते है। व्यंजन के उच्चारण में स्वर की ध्वनि निकलती है।

व्यंजन के 3 प्रकार/भेद होते है:-

  • स्पर्शी व्यंजन
  • अन्तःस्थ व्यंजन
  • ऊष्म व्यंजन

वह व्यंजन जो कंठ, होष्ठ, तालू, मूर्धा, दन्त आदि स्थानों के स्पर्श से बोले जाते है। स्पर्शी व्यंजन कहलाता है, इन्हें ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहते है।

उदा. – ‘क’ वर्ग, ‘च’ वर्ग, ‘त’ वर्ग इत्यादि।

वर्गअक्षर
‘क’ वर्गक, ख, ग, घ, ड़
‘च’ वर्गच, छ, ज, झ, ञ
‘ट’ वर्गट, ठ, ड, ठ, ण
‘त’ वर्गत, थ, द, ध, न
‘प’ वर्गप, फ, ब, भ, म

वह व्यंजन, जो जिनके उच्चारण में केवल कष्ठ या गला का उपयोग होता है या जिनका उच्चारण कष्ठ और निचली से होता है। ‘कष्ठव्य व्यंजन’ कहलाते है।

उदा. – क, ख, ग, घ, ड़ (क वर्ग)
स्वर – अ, आ

वह व्यंजन, जो तालू और जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले व्यंजन जीभ के मोटे वाले भाग और तालू के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण ‘तालव्य व्यंजन’ कहलाते है।

उदा. – च, छ, ज, झ, ञ (च वर्ग)
स्वर – इ, ई, य, श

वह व्यंजन, जो मूर्धा और जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले व्यंजन या जीभ के पतले भाग और तालू के अगले भाग के स्पर्श से बोले जाने वाले व्यंजन ‘मूर्धन्य व्यंजन’ कहलाता है।

उदा. – ट, ठ, ड, ठ, ण (ट वर्ग)
स्वर – ऋ, र, ष (लगभग)

वह व्यंजन, जो दाँतो के प्रयोग से बोले जाने वाले वर्ण दन्तव्य कहलाते है अर्थात् दाँतो व जीभ के स्पर्श से बोले जाने वाले वर्ण दन्तव्य है।

उदा. – प, फ, ब, भ, म (प वर्ग)
नोट – वर्गीय व्यंजनों को स्पर्श संघर्षी भी कहते है।

वह व्यंजन इसके उच्चारण में जीभ, तालू और दाँत, होठ का परस्पर स्पर्श होता है। लेकिन पूर्ण स्पर्श नहीं होता।

उदा. – य, र, ल, व
नोट – ‘य’ तथा ‘र’ को अर्थ स्वर भी कहते है।

जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु मुख में किसी स्थान विशेष पर घर्षण करती हुई या रगड़ती हुई निकलती है, उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते है।

उदा. – श, ष, स, ह
नोट – ‘र’ लुठित व्यंजन कहलाता है और ‘ल’ पाश्र्विक (इसके उच्चारण में वायु जीभ के पास से निकलती है)

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